इन दिनों राजनितिक गलियारों में इस बात की हलचल बहुत तेज़ है कि आखिर कांग्रेस का राष्ट्रिय अध्यक्ष(President) कौन बनेगा. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक 24 साल बाद कांग्रेस इस बार गैर गांधी परिवार के सदस्य को अध्यक्ष की कुर्सी सौंप सकती है. कांग्रेस के अध्यक्ष पद की रेस में सबसे आगे अगर कोई है तो वो हैं राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत(Ashok Gehlot). कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी(Sonia Gandhi) के साथ मुलाकात के बाद अशोक गहलोत के बिना कुछ कहे मुस्कुराते हुए दिल्ली से जयपुर रवाना होने पर अटकलों का बाजार गरमाया हुआ है. माना जा रहा है कि 28 अगस्त को कांग्रेस के सीडब्ल्यूसी(CWC) की बैठक में पार्टी के नए अध्यक्ष की घोषणा हो सकती है. पार्टी महासचिव केसी वेणुगोपाल(KC Venugopal) का कहना है कि सीडब्ल्यूसी की एक वर्चुअल बैठक 28 अगस्त को होगी जिस कांग्रेस अध्यक्ष के चुनाव की तारीख को मंजूरी देने के लिए आयोजित की जाएगी. और कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी सीडब्ल्यूसी की बैठक की अध्यक्षता करने वाली हैं.
सीताराम केसरी थे आखिरी गैर गाँधी परिवार से अध्यक्ष
बिहार के वरिष्ठ कांग्रेस नेता सीताराम केसरी साल 1996 से 1998 तक इस पार्टी के अध्यक्ष रह चुके हैं. केसरी महज 13 साल की उम्र से ही स्वतंत्रता आंदोलन में हिस्सा लेने लगे थे. 1930 से 1942 के बीच सीताराम केसरी स्वतंत्रता आंदोलन में हिस्सा लेने के चलते कई बार जेल भी गए थे. साल 1973 में बिहार कांग्रेस समिति के अध्यक्ष बने और 1980 में कांग्रेस के कोषाध्यक्ष बने थे. 1967 में सीताराम केसरी कटिहार लोकसभा सीट से सांसद भी रह चुके हैं. इसके बाद केसरी 1971 से 2000 तक पांच बार राज्यसभा के सदस्य चुने गए थे. गांधीवादी विचार के समर्थक सीताराम केसरी इंदिरा गांधी, राजीव गांधी और पीवी नरसिम्हा राव की सरकार में मंत्री भी रहे थे. इतने लंबे राजनीतिक अनुभव वाले सीताराम केसरी को बेरुखी के साथ पार्टी के अध्यक्ष पद से हटा दिया गया था. कहा जाता है कि सोनिया गांधी को कांग्रेस अध्यक्ष बनाने के लिए सीताराम केसरी के साथ बेहद खराब बर्ताव किया गया था.
सीताराम केसरी को हटाने के लिए बनाया गया था माहौल
12वें लोकसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस को देशभर में 142 सीटें मिली थीं. इस चुनाव में सोनिया गांधी ने 130 से ज्यादा रैलियों को संबोधित किया था. उस समय कांग्रेस अपनी पारंपरिक सीट अमेठी में भी चुनाव हार गई थी. इसके अलावा अर्जुन सिंह, नारायण दत्त तिवारी जैसे नेता भी अपनी-अपनी सीटें हार गए थे. कांग्रेस के एक गुट ने इस हार ठिकरा सीताराम केसरी पर फोड़ दिया था. हैरान करने वाली बात यह है कि सीताराम केसरी ने पूरे चुनाव में एक भी रैली को संबांधित नहीं किया था और उनपर आरोप लगे कि उनके कमजोर नेतृत्व के चलते पार्टी को सानिया गांधी का फायदा नहीं मिल पाया. माना जाता है कि यहीं से पार्टी के कुछ नेताओं ने सीताराम केसरी को कांग्रेस के अध्यक्ष पद से हटाने की फाइल बनानी शुरू कर दी थी.
जब सीताराम को बुरी तरह से किया गया था बेइज़्ज़त
14 मार्च 1998 ही वह तारीख है जिस दिन कांग्रेस के नेताओं ने सीताराम केसरी को बेइज्जत किया था और उन्हें पार्टी के अध्यक्ष पद से हटा दिया था. 5 मार्च 1998 को कांग्रेस कार्य समिति(CWC) की बैठक बुलाई गई थी जिसमे यह फैसला लिया गया था कि सोनिया गांधी पार्टी के कार्यों में ज्यादा सक्रिय हों और संसदीय दल का नेता चुनने में हेल्प करें. उस वक्त संसदीय दल के नेता सीताराम केसरी ही थे. प्रणब मुखर्जी ने कांग्रेस पार्टी के कानून में बदलाव कर तय कराया था कि पार्टी का नेता संसदीय दल का नेता हो सकता है, चाहे वह लोकसभा या राज्यसभा का सदस्य हो या नहीं.
बुरे दौर से गुज़र रही है कांग्रेस
पिछले दो लोकसभा चुनाव 2014 और 2019 में कांग्रेस का प्रदर्शन बेहद निराशाजनक रहा है. पार्टी जैसे तैसे करके 50 तकअपनी सीटें पहुंचा पाई है. इसके अलावा पार्टी देशभर में केवल छत्तीसगढ़ और राजस्थान में अपने बूते सरकार चला रही है. बिहार में महागठबंधन की सरकार के छोटे घटक दल हैं. हाल के चुनावों में लगभग सभी में कांग्रेस की हार ही हुई है. पार्टी G23 नेता सोनिया गांधी और राहुल गांधी के नेतृत्व पर भी सवाल उठा चुके हैं. गुलाम नबी आजाद(Gulam Nabi Azad) जैसे पार्टी के कई कद्दावर नेता पार्टी से अलग हो चुके हैं. ऐसे वक्त में माना जा रहा है कि गांधी परिवार 24 साल बाद किसी गैर गांधी परिवार के नेता को कांग्रेस की कमान सौंप सकती है. हालांकि जब तक फैसला हो नहीं जाता है तब तक कुछ कहा नहीं जा सकता है.