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Saturday, July 27, 2024

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सरकारी नौकरी करने वाले पिता ने अपनी मृ त बेटी को वापस लाने के लिए तय किया “फर्श से अर्श तक का सफर”

आज हम आपको एक ऐसे शख्‍स की कहानी बता रहे हैं। जिसका बचपन गरीबी में बीता, लेकिन अपनी संकल्‍पशक्ति और बेजोड़ रणनीति के दम पर उन्‍होंने भारतीय कॉरपोरेट जगत में वह ऊंचाई हासिल की, जिसकी अधिकांश आदमी बस कल्‍पना ही कर पाते हैं।  यह कहानी है- गुजरात(Gujrat) के एक साधारण किसान परिवार में जन्‍मे करसन भाई पटेल(Karsanbhai Patel) की। जिन्होंने अपनी मृ त बेटी को वापस लाने के लिए “फर्श से अर्श” तक का सफर तय किया और निरमा(Nirma) कंपनी खड़ी कर दी। पटेल आज लगभग 5,524 करोड़ रुपए की कंपनी के मालिक हैं। सरकारी नौकरी(Government Job) करने वाले इस व्यक्ति ने अपनी बेटी(Daughter) को वापस लाने की चाह में देसी तो छोड़ि‍ए, टॉप विदेशी कंपनियों के भी पसीने छुड़ा दिए।

खुद घर- घर जाकर सर्फ़ बेचा

करसन भाई पटेल ने अपने घर के पीछे डिटर्जेंट पाउडर बनाना शुरू किया। डिटर्जेंट पाउडर बनाने के बाद वह इसे घर-घर जा कर बेचा करते थे। इतना ही नहीं, वह डिटर्जेंट पाउडर के हर पैकेट के साथ ये गारंटी भी देते थे कि अगर उनका प्रोडक्ट सही नहीं हुआ तो वह पैसे वापस कर देंगें। उनकी कामयाबी का दूसरा सबसे बड़ा राज था सर्फ़ का दाम। उन दिनों बाज़ार में जो सबसे सस्ता डिटर्जेंट बिक रहा था। उसकी कीमत भी 13 रुपये किलो थी। मगर करसन भाई पटेल 3 रुपये किलो दाम पर सर्फ़ बेचा करते थे। नतीजन, मध्यवर्गीय तथा निम्न मध्यवर्गीय परिवारों में वो अपनी जगह बनाने में कामयाब रहे।

“हेमा रेखा जया और सुषमा… सबकी पसंद… निरमा”

1969 में केवल एक व्यक्ति द्वारा शुरू की गयी कंपनी में आज लगभग 18000 लोग काम करते हैं और इस कंपनी का टर्नओवर 70000 करोड़ से भी ज़्यादा है। निरमा वॉशिंग पाउडर ने किस तरह से बाज़ार में अपनी जगह बनाई इसका अंदाज़ा आप इस बात से लगा सकते हैं कि आज भी कई लोग जब डिटर्जेंट खरीदने जाते हैं, तो दुकानदार को यही कहते हैं, “भइया एक पैकेट निरमा देना।”

करसनभाई पटेल ने रसायन शास्त्र में बी.एस.सी की

करसनभाई पटेल का जन्म 13 अप्रैल 1944 को गुजरात के मेहसाणा शहर के एक किसान परिवार में हुआ था। करसन पटेल के पिता खोड़ी दास पटेल एक बेहद साधारण इंसान थे लेकिन इसके बावजूद उन्होंने अपने बेटे करसन को अच्छी शिक्षा दी। करसनभाई पटेल ने अपनी शुरुआती शिक्षा मेहसाणा के ही एक स्थानीय स्कूल से पूरी की। 21 साल की उम्र में इन्होंने रसायन शास्त्र में बी.एस.सी की पढ़ाई पूरी की।

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सरकारी नौकरी से नहीं थे संतुष्ट

वैसे तो अधिकतर गुजरातियों की तरह करसन भी नौकरी ना कर के खुद का व्यवसाय करना चाहते थे लेकिन घर की स्थिति ऐसी नहीं थी कि वह खुद के दम पर कोई नया काम शुरू कर सकें। यही वजह रही कि उन्होंने अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद एक प्रयोगशाला में सहायक यानी लैब असिस्टेंट की नौकरी कर ली। कुछ समय तक लैब में नौकरी करने के बाद उन्हें गुजरात सरकार के खनन और भूविज्ञान विभाग में सरकारी नौकरी मिल गई। वैसे एक आम इंसान के नजरिए से देखा जाए तो करसन भाई की ज़िंदगी अच्छी कट रही थी। एक सरकारी नौकरी और अपने परिवार के साथ उन्हें खुश रहना चाहिए था। वह खुश तो थे लेकिन सतुष्ट नहीं थे।

बेटी की याद में खड़ी कर दी ‘निरमा’ कंपनी

कुछ अपना और कुछ बेहतर करने की ख्वाहिश उनके दिल में लगातार मचल रही थी लेकिन वह किसी तरह अपनी इच्छा को मार कर नौकरी करते रहे थे। करसन पटेल अपनी बेटी से बहुत प्यार करते थे। वह चाहते थे कि उनकी बेटी पढ़ लिख कर कुछ ऐसा करे कि पूरा देश उसका नाम जाने। शायद ऐसा संभव भी हो पाता अगर उनकी बेटी ज़िंदा रहती तो। जब वह स्कूल में पढ़ती थी तभी एक हादसे में उसकी मौ त हो गई। बेटी को खोने के गम ने कुछ समय के लिए करसन भाई को अंदर से तो ड़ दिया लेकिन इसी हादसे ने उन्हें जीवन की एक नई राह भी दिखाई।

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