Former RAW agent lost the battle of life with Corona Know about Former RAW Agent Manoj Rajan Dixit: बहुत से ऐसे लोग है जिन्होंने देश के लिए अपनी जान भी दाओं पर लगा दी और जिन्होंने अपना पुरा जीवन इस देश को समर्पित कर दिया, देश के जवान हर जंग का सामना करते रहे लेकिन वह इस कोरोना की जंग से न लड़ सके , मैं उस शख्स की बात कर रहा हूँ जिसने इंडियन आर्मी में रहकर देश की सेवा की ,जिसने पाकिस्तान की जेल में 13 साल गुज़ारे और आज वह करना महामारी से न लड़ सके उनका नाम है मनोज रंजन दीक्षित कोरोना की चपेट में आने से ‘पूर्व रॉ एजेंट मनोज रंजन दीक्षित’ की मौत हो गई. कुछ दिन पहले ही उन्हें करना संक्रमण हुआ था. उन्हें सांस लेने में तकलीफ की शिकायत होने पर जल्द ही अस्पताल में भर्ती कराया गया था. जब उन्हें अस्पताल ले जाया गया तो इलाज के दौरान ही रॉ एजेंट मनीज दीक्षित ने दम तोड़ दिया.
मनोज दीक्षित अपने जीवन के 13 साल उन्होंने पाकिस्तान की जेल में बिताए।
मनोज दीक्षित उयतर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में अकेले ही रहते थे. सन 2013 में ही पत्नी की कैंसर से मौत हो चुकी है. उस वक्त वह अकेले पड़ चुके थे, मनोज दीक्षित को जब रॉ एजेंसी की तरफ से पाकिस्तान में जासूसी करने के लिए भेज गया और कुछ समय बाद वह पकड़े जा चुके थे जासूसी के आरोप में गिरफ्तार हुए मनोज दीक्षित को करीब 13 साल वहां की जेल में रहना पड़ा . इसके बाद पाकिस्तान के उच्च न्यायालय के निर्देश देने पर वर्ष 2005 में उनको रिहा किया गया था.
जब वह कोरोना संक्रमित पाए गए तब उन्हें अस्पताल बेहद मुश्किल से नसीब हुआ। ज्यादातर अस्पतालों में भर्ती करने के लिए कोई जगह नही थी। खबरों के मुताबिक, पूर्व रॉ एजेंट कोविड संक्रमित हो गए थे. अचानक से उनको सांस लेने में तकलीफ होने लगी. जब उन्हें तकलीफ ज्यादा होने लगी तो बाद में आस-पास के लोगों ने समाजसेवियों से मदद की गुहार लगाई. समाजसेवियों ने मनोज दीक्षित को डॉक्टर के पास ले गए और उनका इलाज करवाया गया. समाजसेवियों ने निजी क्लीनिक में उनको भर्ती करवाया. हालत गंभीर होने पर बड़ी मुस्किल से उन्हें अस्पताल नसीब हुआ. लेकिन, तबतक देर हो चुकी थी. जबतक वह अस्पताल पहुंचे तबतक उनकी मौत हो चुकी थी।.
पाकितान की कराची जेल में किया गया था कैद
गौरतलब है कि मनोज दीक्षित को 1985 में रॉ में भर्ती किया गया था .दो बार मिलिट्री ट्रेनिंग के बाद उन्हें पाकिस्तान भेजा गया था. वहां से उन्होंने कई जरूरी जानकारियां साझा की थी.वे पाकिस्तान में भारत के लिए जासूसी के आरोप में साल 1992 में गिरफ्तार हुए थे. इसके बाद वे करीब 13 साल कराची की जेल में रहे. वहां की शीर्ष अदालत के निर्देश पर साल 2005 में उन्हें वाघा अटारी बॉर्डर पर रिहा कर दिया गया था.