श्रीनगर के डाउनटाउन इलाके में ‘हारी पर्वत’ के तले स्थित “पर्वत” के रूप में जाना जाने वाला यह मंदिर पंडित समुदाय का सबसे पवित्र धार्मिक स्थान माना जाता है। मंदिर के आस-पास रहने वाले हजारों स्थानीय लोगों (पंडितों) की शुरुआत सुबह – सुबह इस मंदिर की प्रार्थना के साथ होती थी। आपको बता दें कि कश्मीरी पंडितों ने 32 साल बाद नवरात्रि (नवरेह) पर फिर से इस माता शारिका देवी मंदिर में पहली बार विशेष पूजा का आयोजन किया। इस मन्दिर में बहुत से वह लोग भी शामिल थे, जो पलायन के बाद पहली बार आए थे।
मजबूरन हमे यह स्थान छोड़ना पड़ा था
ऐसे ही एक व्यक्ति अपना उदाहरण बनकर सामने आए है। पलायन के बाद पहली बार डॉक्टर रवीश इस मंदिर के दर्शन करने आए थे। उनका कहना है कि वह अपने जीवन के पहले 20 साल तक वह रोजाना सुबह रोशनी होने से पहले इस मंदिर में दर्शन करने आया करते थे। वह प्रार्थना करते थे और उसके बाद ही अपने दैनिक कार्यों को शुरू करते थे। उनके अलावा उनके माता-पिता भी यही अभ्यास करते थे। लेकिन नब्बे के दशक में जब यहां आतंकवाद पनपा तो उन्हें इस जगह को छोड़ना पड़ा। रवीश ने कहा कि इस मंदिर में जाने की इच्छा को अपने दिल में लेकर उनके माता-पिता की मृत्यु हो गई, लेकिन आज वह आंसू भरी आंखों के साथ यहां इस पूजा अर्चना का हिस्सा बने थे ,लगातार बहते आंसू उन्हें बात भी नहीं करने दे रहे थे। उन्हें इतनी खुशी इतनी थी कि उसका वर्णन करने के लिए शब्द नहीं मिल रहे थे।
बड़े पैमाने पर लगता था नवरेह मेला
कश्मीर से कश्मीरी पंडित समुदाय के पलायन से पहले नवरेह पर “मेला” बड़े पैमाने पर लगता था, क्योंकि नवरेह हिंदू धर्म के अनुसार नए साल का पहला दिन होता है। पलायन से पहले इस मंदिर के आसपास रहने वाले पंडित इस मंदिर में सुबह की प्रार्थना के साथ अपने दिन की शुरुआत करते थे और उनमें से कई इस मंदिर से सटी “मकधूम साहिब” दरगाह भी जाते थे। आज भी कुछ वैसा ही लग रहा था। न केवल कश्मीर में बल्कि कश्मीर के बाहर रहने वाले कश्मीरी पंडित भी जश्न मनाने के लिए यहां एकत्र हुए थे, क्योंकि उन्हें लगता है कि घाटी में स्थिति में सुधार हुआ है। कश्मीर के बाहर से आए एक कश्मीरी पंडित विजय रैना ने कहा कि हमने अपने वतन वापस आने की उम्मीद खो दी थी, लेकिन यह माहौल देखकर मुझे लगा कि हमारा समुदाय जल्द ही घाटी में वापसी कर लेगा।
कश्मीरी पंडित जल्द ही घर वापसी करेंगे
कश्मीर से पलायन एक निवासी रैना ने कहा, आज नए साल के दिन ऐसा माहौल बन गया है, जो विस्थापितों के लिए एक अच्छा संदेश जाएगा। हम सोचते थे कि हम वापस नहीं आ पाएंगे, लेकिन अब स्थिति अच्छी हो रही है और ऐसा लग रहा है कि पंडित समुदाय जल्द ही लौटेगा। ऐसा रैना ही नहीं प्रार्थना में शामिल हर पंडित मानता दिखा। लोगों को ये आशा थी कि अगले वर्ष यहां जोश से मेला सजेगा, क्यूंकि तब तक कश्मीरी पंडित यहां लौट चुके होंगे। जे के पीस फ़ोरम द्वारा इस नवरेह मिलन उत्सव का आयोजन किया गया था और इसके पीछे संदेश दो समुदायों के बीच खोए हुए विश्वास को फिर से बनाना और कश्मीर से बाहर के लोगों को यह संदेश देना था कि अब समय आ गया है कि वापसी करें। दो समुदायों के बीच की दूरी को कम किया जाए।