सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला: दिल्ली वक्फ बोर्ड की याचिका खारिज, गुरुद्वारे को माना वैध धार्मिक स्थल
📍 नई दिल्ली | 5 जून 2025
दिल्ली वक्फ बोर्ड को सुप्रीम कोर्ट से तगड़ा झटका लगा है। शाहदरा स्थित एक संपत्ति पर दावा करते हुए वक्फ बोर्ड ने कहा था कि वहां पहले मस्जिद तकिया बाबर शाह हुआ करती थी। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इस याचिका को खारिज करते हुए साफ कहा कि जब वहां सालों से एक सक्रिय गुरुद्वारा मौजूद है, तो वक्फ बोर्ड को अपना दावा स्वत: छोड़ देना चाहिए।
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सुप्रीम कोर्ट का दो टूक: ‘जहां गुरुद्वारा है, वहां विवाद नहीं होना चाहिए’
जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा की पीठ ने बुधवार को सुनवाई के दौरान टिप्पणी की –
“यह ‘किसी तरह का ढांचा’ नहीं बल्कि एक कार्यरत धार्मिक स्थल है। जब वहां गुरुद्वारा है और धार्मिक गतिविधियां हो रही हैं, तो उसे वैसे ही रहने दिया जाना चाहिए।”
कोर्ट ने कहा कि दिल्ली वक्फ बोर्ड को इस जमीन पर दावा छोड़ देना चाहिए, क्योंकि उस जगह पर अब गुरुद्वारे की मान्यता स्थापित हो चुकी है।
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क्या था वक्फ बोर्ड का दावा?
वक्फ बोर्ड ने कोर्ट में तर्क दिया कि यह जमीन मूलतः वक्फ संपत्ति थी और उस पर कभी मस्जिद तकिया बाबर शाह हुआ करती थी। वकील संजय घोष ने कहा कि निचली अदालतों ने यह माना था कि गुरुद्वारा बनने से पहले वहां मस्जिद थी।
लेकिन हाई कोर्ट में प्रतिवादी पक्ष ने बताया कि इस जमीन को 1953 में मोहम्मद अहसान नामक व्यक्ति ने बेच दिया था और तब से गुरुद्वारा वहां संचालित हो रहा है।
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दस्तावेजों की कमी और कानूनी पेच
हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट दोनों ने यह भी कहा कि प्रतिवादी पक्ष जमीन की बिक्री के पूर्ण दस्तावेज नहीं दे सका, लेकिन इससे वक्फ बोर्ड को फायदा नहीं मिल सकता। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि यह वादी की जिम्मेदारी है कि वह संपत्ति के वक्फ होने का प्रमाण प्रस्तुत करे — जो वह नहीं कर सका।
वक्फ कानून में बदलाव और बढ़ती निगरानी
यह फैसला ऐसे समय में आया है जब वक्फ संपत्तियों के पंजीकरण और प्रबंधन को लेकर नए कानून पर बहस जारी है। केंद्र सरकार ने वक्फ एक्ट में संशोधन कर यह प्रावधान जोड़ा है कि बिना पंजीकरण के किसी भी संपत्ति को वक्फ संपत्ति नहीं माना जाएगा।
सूत्रों के अनुसार, पंजीकरण न होने पर संपत्ति को ‘विवादित’ माना जाएगा और मामला वक्फ ट्रिब्यूनल में भेजा जाएगा।
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क्या कहता है यह फैसला? | विश्लेषण
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यह मामला गुरुद्वारा बनाम मस्जिद विवाद का नहीं, बल्कि कानूनी कब्जे और धार्मिक मान्यता का है।
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सुप्रीम कोर्ट ने धर्म के आधार पर नहीं, बल्कि स्थापित धार्मिक ढांचे और ऐतिहासिक कब्जे को मान्यता दी है।
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इससे भविष्य में वक्फ संपत्तियों के दावे और धार्मिक स्थलों पर विवादों में कानूनी दृष्टिकोण और भी स्पष्ट होगा।
निष्कर्ष:
दिल्ली वक्फ बोर्ड बनाम गुरुद्वारा मामला अब एक मिसाल बन गया है। सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला यह संदेश देता है कि विवादित भूमि पर ऐतिहासिक कब्जा और वर्तमान उपयोग न्यायिक निर्णय में अहम भूमिका निभाता है।