राजस्थान ( Rajasthan) के जयपुर में ढाई दिन का झोपड़ा मौजूद है। झोपड़ा को लेकर तरह-तरह की बातें की जाती है। इसी ढाई दिन का झोपड़ा क्यों कहते हैं। इसके पीछे की भी एक कहानी (Story) है। ढाई दिन के झोपड़े में वहां के आसपास रहने वाले लोग नमा ज अदा करते हैं। लेकिन क्या आपको पता है कि इसका आकार कहां से लिया गया है। कुछ लोग इसे म स्जिद भी कहते हैं लेकिन यह सनातनी संस्कृति से मेल खाता है। खबर के माध्यम से हम आपको बताएंगे कि आखिर यह सनातनी संस्कृति से कैसे मेल खाता है? आइए आपको पूरी खबर विस्तार से बताते हैं।
क्यों कहते हैं ढाई दिन का झोंपड़ा
राजस्थान के जयपुर में एक शहर है जिसे अजमेर शहर कहते हैं। अजमेर शहर के बीचोबीच ढाई दिन का झोपड़ा मौजूद है। मान्यता के अनुसार इसे बनाने में कुल ढाई दिन का ही समय लगा था। रात दिन एक कर फुल ढाई दिनों में इसे बनाया गया था। इसे बनाने के लिए 24 घंटा काम चल रहा था। मात्र ढाई दिन में तैयार होने के कारण इसे ढाई दिन का झोपड़ा कहा जाता है। ढाई दिन की झोपड़ी के चारों ओर दीवारें बनी हुई है। बीच में एक किला मौजूद है। जिसमें आस पास के लोग नमा ज अदा करते हैं।
सनातनी संस्कृति से खाता है मेल
अगर आप ढाई दिन की झोपड़ी की दीवारों को देखें तो इसमें आपको कई ऐसे आकार देखने को मिलेंगे। जिससे यह जानकारी मिलती है कि इसे बनाने वाला कोई हिंदू समुदाय का ही रहा होगा। सिर्फ इतना ही नहीं इसका आकार भी सनातनी संस्कृति से मेल खाता है। स्वास्तिक का प्रतीक भी आपको इसकी दीवारों में देखने को मिलेगा। इसकी एक मीनार पर आप ओम नुमा आकर भी साफ तौर पर देख सकते हैं। कुछ लोग इसे देखने के बाद यह भी कहते हैं कि इसे मंदिर बनाया जा रहा था।
Read Also:-पहले प्रति बंध, फिर केंद्र की गाइडलाइन और अब LG दे इजाजत….
ढाई दिन का झोपड़ा एक म स्जिद है या मंदिर
अगर ढाई दिन का झोपड़ा को आप अच्छे (Good) से देखें तो आपको स्पष्ट हो जाएगा कि आखिर यह मंदिर(Temple) है या म स्जिद। यह बात अलग है कि इसमें वहां रहने वाले आसपास के लोग इबादत करते हैं लेकिन इस बात को भी कोई नकार नहीं सकता कि यह मंदिर जैसा दिखता है। वहां के आसपास रहने वाले हिंदू समुदाय के लोगों का कहना है कि वह एक मंदिर ही है। अगर आपको भी घूमना पसंद है तो जरूर आप इसे देखने जाएं। देखने के बाद आपको स्पष्ट हो जाएगा कि इसका आकार कैसा है।