यह बात जगजाहिर है कि हमारे समाज मे किन्नरों को आदर सत्कार नही किया जाता। अगर किसी के यहां किन्नर बच्चे का जन्म हो जाये तो उस परिवार का समाज से तिरस्कार से हो जाता है। उस परिवार को शर्म के सहारे पूरा जीवन व्यतीत करने को मजबूर होने पड़ता है।
लेकिन अगर उसी परिवार का किन्नर बच्चा पढ़ लिखकर आज जज बना गया है। आज हम आपको जोइता मंडल की कहानी बताने जा रहे हैं जो देश की प्रथम किन्नर न्यायाधीश है। हालांकि किन्नर होने की वजह से उन्हें समाज मे हमेशा से चुनौती का सामना करना पड़ता और जोइता ने इस सब चुनौतीयों को पार करते हुए कामयाबी का मुकाम हासिल किया।
30 साल की जोइता मंडल पश्चिम बंगाल की रहने वाली हैं। वह भारत की पहली किन्नर न्यायाधीश है। जोइता ने अपने जीवन मे आयी चुनौतियों से हार नही मानी और इसी का नतीजा है कि वह आज सफल व्यक्ति है। साथ ही समाज को नई दिशा दे रहीं हैं। आज वे एक वृद्धाश्रम को चला रही हैं और रेड लाइट एरिया में काम कर रही महिलाओं की जिंदगी को बदलने की कोशिश कर रहीं हैं। जोइता मंडल के इन सब कार्यो से प्रभावित होकर बंगाल सरकार ने उन्हें एक लोक अदालत का न्यायाधीश बना दिया। और इस तरीके से जोइता मंडल भारत की पहली महिला किन्नर न्यायाधीश बन गई।
जब इंदौर में जोइता एक प्रोग्राम में भाग लेने गयी तो प्रोग्राम स्थल पर मौजूद मीडिया से बात की और उन्होंने किन्नर समाज और रेड लाइट एरिया में रहने वाले परिवार की कई समस्याओं को लेकर मीडिया से बात की और उन्होंने अपने पर्सनल जीवन के बारे में भी बताया कि वह किस तरह घर ना होने के कारण बस अड्डे पर भी अपनी जिंदगी के कुछ दिन गुजर बसर किए हैं।
जोइता मंडल को एक किन्नर होने की वजह से अपने जीवन में बहुत से ऐसे जुल्म सहे जिसे एक आम इंसान शायद न सह सके। उसे मात्र सुनकर ही आमलोगों की रूह कांप जाए। उनका बचपन एक सामान्य बच्चे की तरह ही बीता लेकिन जैसे-जैसे वे बड़ी हुई उन्हें आभास हुआ कि वह सामान्य व्यक्ति नहीं है वे कुछ अलग है। एक बार दुर्गा पूजा पर वह सजने संवरने लगी तो घरवालों ने उन्हें इतना मारा की वह 4 दिन तक बिस्तर से नही उठी और उनका इलाज भी घरवालों ने नहीं करवाया।
जोइता आगे बताती हैं कि पढ़ाई के दौरान साथी लोग उनका मजाक उड़ाया करते थे इस सब से तंग आकर उन्होंने पढ़ाई बीच मे पढ़ाई छोड़ दी और 2009 में उन्होंने घर भी छोड़ दिया। इसके बाद उन्हें खुद कुछ नही पता था कि कहां जाना है क्या करना है। इस दौरान उनके पास रहने के लिए जगह और खाने के लिए पैसे नहीं थे। इस दौरान उनकी रातें रेलवे स्टेशन और बस अड्डों पर बीती और उन्होंने भीख मांग कर अपना जीवन यापन किया। होटल वाले उन्हें खाना नहीं देते थे बस कुछ पैसे देखे कहते थे बस दुआ करो
जोइता बताती है कि जहां वे गयी थी उस जगह का नाम दिनाजपुर था और उन्हें वहां पर तिरस्कार के अलावा कुछ नहीं मिला। फिर उन्होंने डेरे में जाना सही समझा जहां पर किन्नर एक साथ रहते हैं। वहां पर उन्होंने अन्य किन्नरों की तरह बच्चों के जन्म औए शादियों में बधाई देने वाला काम भी किया और इस सब के बीच जोइता मंडल ने अपनी पढ़ाई को जारी रखा।
जैसे-जैसे जोइता बढ़ी हुई उन्होंने अपनी जिम्मेदारियों को समझा और पढ़ाई के साथ-साथ जब हालात सुधरे तो उन्होंने लोगों की मदद के लिए काम करना शुरू किए जोइता अपनी कहानी में बताती हैं कि 2010 में उन्होंने दिनाजपुर में एक संस्था स्थापित की जो समाज में किन्नरों को उनका अधिकार दिलवाती है। इसके अलावा उन्होंने एक वृद्ध आश्रम खोला और रेड लाइट एरिया में काम करने वाले महिलाओं के उत्थान के लिए कई कार्य किए उनके राशन कार्ड बनवाएं, आधार कार्ड बनवाएं और उन्हें शिक्षित करने के लिए प्रेरित भी किया।
इसके बाद जोइता बताती हैं अप्रैल 2014 को हाईकोर्ट ने उनके और उनके जैसे कई किन्नरों के पक्ष में हाई कोर्ट फैसला सुनाया। कोर्ट ने बताया कि जिस तरीके से समाज में मेल और फीमेल जेंडर है उसी तरीके से समाज में तीसरा भी जेंडर है वो है ‘ट्रांसजेंडर’
यह किसी भी किन्नर के लिए बहुत सम्मान की बात है कि जिस समाज में उनका तिरस्कार किया जाता था उसी समाज की व्यवस्था ने उन्हें उस समाज में एक स्थान प्रदान किया।
इसके बाद जोइता ने समाज से कटे हुए लोगों को हक दिलाने के लिए कोर्ट में लड़ाई शुरू की और वह तक खत्म ही नहीं हुई थी कि हाईकोर्ट के फैसले से उन्हें और ज्यादा हिम्मत मिली जीवन में आगे बढ़ने के लिए प्रेरित किया। यह सब उनकी मेहनत का ही नतीजा था कि 8 जुलाई 2017 के दिन राज्य सरकार ने उन्हें लोक अदालत में जज की नियुक्ति भी और उन्होंने सदा के लिए इतिहास के पन्नों में अपना नाम दर्ज करा लिया।
जोइता मंडल बताती हैं कि उन्होंने परिस्थितियों का डटकर सामना किया और जीवन में आने वाली हर परेशानी को अपनी मंजिल का रास्ता समझ कर उसका स्वागत किया। आज वह लोग उन पर गर्व करते हैं जो उनके पहले उपेक्षा करते थे।