दिल्ली में जिस तरह से सीएए(CAA) और एनआरसी(NRC) का वि रोध करते हुए एक विशेष समुदाय के लोगों ने दिल्ली में अराजकता की स्तिथि पैदा कर दी थी। आम जनता के साथ-साथ दिल्ली पुलिस इसको कभी भी नहीं भुला सकती है। इसी से संबंधित एक मामले में सुनवाई हुई। यह सुनवाई दिल्ली की कड़कड़डूमा कोर्ट(Karkardooma Court) में हुई और मामला था हेड कांस्टेबल रतन लाल की ह त्या का।
यह किस प्रकार की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता थी- कोर्ट
इस मामले की सुनवाई करते हुए अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश विनोद यादव की कोर्ट ने आ रोपित मो हम्मद इम्ब्राहिम को जमानत देने से इंकार कर दिया। कोर्ट में जज साहब ने पूछा कि मुझे समझ नहीं आ रहा है कि हाथ में तल वार लेकर किस प्रकार की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का प्रयोग किया जा रहा था।
दो लोगों को पहले ही मिल चुकी जमानत
आपको बता दें कि पिछले वर्ष 24 फरवरी को दयालपुर इलाके में चांद बाग के पास वजीराबाद रोड पर विशेष समुदाय के लोगों ने दिल्ली पुलिस पर धा वा बोल दिया। जिसमें हेड कांस्टेबल रतन लाल शहीद हो गए थे। इस मामले में आ रोपित मंसूर सहित दो को पहले ही जमानत मिल चुकी है। इसी के आधार पर इब्राहिम ने भी जमानत याचिका दायर की थी। कोर्ट ने उसकी याचिका को खारिज कर दिया और बताया कि मंसूर को एक्यूट ट्रांसिएंट साइकोटिक डिसआर्डर नामक मानसिक रोग था, इस कारण उसे जमानत दी गई थी। तुम्हें इस तरह का कोई रोग नहीं है।
वीडियो का हवाला देते हुए खुद को बताया निर्दोष
आरो पित ने वीडियो का हवाला देते हुए कोर्ट में दावा पेश किया कि हेड कांस्टेबल रतन लाल नर्सिंग होम की छत से चलाई गई गो ली से शहीद हुए थे। कोर्ट ने इस खोखली दलील को नकार दिया और कहा कि वीडियो में नर्सिंग होम की छत पर कोई नहीं दिख रहा है।
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कोर्ट आँखे नहीं मूंद सकती
कोर्ट ने कहा कि रिकॉर्ड में दर्ज सबूत के अनुसार जिस तरह से इस पूरी घट ना को अंजाम दिया गया और हेड कांस्टेबल को रतन लाल को शहीद किया गया और अन्य पुलिसकर्मियों को नि शाना बनाया गया। यह दिखता है कि ये सब सोची समझी सा जिश के तहत किया गया है। कोर्ट अपनी आँखें नहीं मूंद सकती कि इस दौरान कई पुलिस कर्मी गं भीर रूप से घा यल हुए थे। इसलिए जमानत नहीं दी जा सकती।