इस वक़्त पूरा बिहार छठ मय हो चुका है. शुक्रवार को नहाय खाय के साथ लोक आस्था के महापर्व छठ की शुरुआत हो चुकी है. शनिवार को यानी आज खरना है रविवार को अस्ताचलगामी और सोमवार को उदीयमान सूर्य को अर्घ्य दिया जाएगा. बिहार में छठी मइया की कृपा ऐसी कि श्रद्धा-भक्ति की सरिता में दूसरे धर्म-समुदाय वाले भी सराबोर हो रहे. एक उदाहरण बिहार के गोपालगंज के हजियापुर गांव की रेहाना खातून हैं.
इस वजह से मानती हैं छठ पूजा
नाम से ही स्पष्ट है कि वह मुस्लिम परिवार से आती हैं, फिर भी छठ का व्रत कर रहीं. इसकी भी एक कहानी है. छठी मइया की कृपा से मनौती पूरी हुई तो रेहाना चार दिवसीय अनुष्ठान करने लगीं. इश्तेखार मियां की पत्नी रेहाना के व्रत का यह दूसरा वर्ष है. शुक्रवार को नहाय-खाय पर रेहाना छठी मइया के गीत गुनगुना रही थीं. आंगन में प्रसाद के लिए गेहूं सूख रहा था. विधि-विधान वह आसपास की ¨हदू परिवार की महिलाओं से पूछ लेती हैं. रेहाना ने दो वर्ष पहले घाट पर जाकर छठी मइया से अपना घर बनवा देने की मनौती मांगी थी. मनौती पूरी हो गई। उसके बाद से वह भी छठ करने लगीं. अनुष्ठान से उनके स्वजन भी प्रसन्न हैं। रेहाना की एक स्वजन मल्लिका परवीन बताती हैं कि दो साल पहले उनकी भाभी ने भी घाट पर जाकर छठी मइया से अपना घर बनाने की मनौती मांगी थी. मनौती पूरी होने पर वह भी छठ कर रही हैं.
इसलिए की जाती है सूर्य की पूजा
छठ पर्व पर एक तरफ छठी मईया का गीत गाया जाता है, तो दूसरी ओर भगवान सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है. विद्वानों की मानें तो कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को यह पूजा की जाती है. षष्ठी तिथि शुक्र की तिथि मानी जाती है और शुक्र की अधिष्ठात्री स्वयं मां जगदंबिका हैं. इस वजह से छठ माता कहा जाता है और उनके मंगल गीत गाकर उनकी आराधना की जाती है. चूंकि यह पर्व संतान की मंगल कामना से जुड़ा हुआ है, इस वजह से यह सूर्य से भी संबंधित हो जाता है। सूर्य कालपुरुष के पंचम भाव के स्वामी हैं. पंचम भाव संतान, विद्या, बुद्धि आदि भावों का कारक माना जाता है. इस कारण इस दिन सूर्य की पूजा करके संतान की प्राप्ति व संतान से संबंधित याचनाओं की पूर्ति के लिए सूर्य की आराधना की जाती है. इसमें समस्त ऋतु फल अर्पित किए जाते हैं और संकल्प के साथ भगवान सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है.