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Wednesday, July 24, 2024

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13 नंबर से क्यों है लोगों को फोबिया? बड़े से बड़े Hotel में भी नहीं होता रूम नंबर 13 और न ही होती है 13वीं मंजिल….

सभी नंबरों में 13 नंबर सबसे ज्‍यादा चर्चा में रहता है. न्यूरोलॉजी के हिसाब से 13 नंबर को अशुभ माना गया है. कई लोग इसे बुरे भाग्‍य का प्रतीक भी मानते हैं. आज तक लोगों में 13 नंबर को लेकर ऐसा फोबिया है, कि लोग न तो इस नंबर के होटल रूम में रुकना चाहते हैं और न ही इस तारीख को कोई नया काम शुरू करना चाहते हैं. कई शहरों में आज भी होटलों में इस नंबर कमरा नहीं होता.

अगर आप ट्रेवलिंग के दौरान होटलों में ठहरते हैं, तो आप अलग-अलग फ्लोर पर भी रूम बुक कराते होंगे. लेकिन क्‍या आपने कभी गौर किया है कि होटलों में कमरा नंबर 13 नहीं होता. कई होटलों में तो 13वीं मंजिल तक नहीं होती. इस वजह से लिफ्ट में भी 12 के बाद सीधे 14वीं मंजिल पर जाने के लिए बटन दबाना पडता है. तो आखिर 13 नंबर को लेकर ऐसा क्‍या रहस्‍य है, जिससे हम अब तक अनजान हैं.

आपको जानकर हैरत होगी, लेकिन पश्चिमी देशों में भी लोग शुभ अशुभ पर विश्‍वास करते हैं. लोगों के अनुसार, ये नंबर बहुत अशुभ है. 13 नंबर को लेकर लोगों में एक तरह का डर बना रहता है, जिसे ट्रिस्काइडे फोबिया कहते हैं.

13 नंबर कुर्सी नहीं होती फ्रांस में

13 नंबर के बारे में ये जानकर आपको बहुत हैरानी होगी कि इसका फोबिया ऐसे ही खत्म नहीं होता. फ्रांस में तो यहां के होटल और रेस्‍टोरेंट में 13 नंबर की कुर्सी नहीं होती. बड़ा अजीब है, लेकिन यहां के लोग इसका पालन करते हैं और अपने होटल में  कुर्सी रखने से बचते हैं. उन्‍हें कहीं न कहीं डर रहता है, कि ऐसा करने से कहीं उनके साथ कुछ गलत न हो जाए.

भारत के इस शहर में नहीं है सेक्टर 13

वहीं अगर आप कभी चंडीगढ़ गए है या वहां के रहने वाले हैं, तो आपने देखा होगा सेक्टर 12 के बाद सीधे सेक्‍टर 14 होता है. इस संबंध में बताया जाता है कि नगर का मानचित्र तैयार करने वाले वास्तुविद ने भी इस नंबर को अशुभ माना था.

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13 नंबर से अटल वाजपेयी का नाता

13 नंबर

भारत के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी एक अकेले ऐसे शख्‍स थे, जिनका 13 नंबर से गहरा नाता था. पहली बार में उनकी सरकार केवल 13 दिन चली. दोबारा उन्होंने इस तारीख को ही शपथ ग्रहण की. इसके बाद भी उनकी सरकार मात्र 13 महीने तक ही चली. इसके बाद उन्‍होंने 13वीं लोकसभा के प्रधानमंत्री के तौर पर 13 दलों के सहयोग से इस तारीख को शपथ लेने के लिए चुना. लेकिन इसके बाद उन्‍हें इस तारीख को ही कड़ी हार का सामना करना पड़ा. लोगों का कहना है कि यह संयोग से ज्‍यादा कुछ नहीं है.

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