राधाबिनोद पाल के बारे में शायद ही आपने सुना होगा। ज्यादा सोचिए मत क्योंकि केवल आप अकेले ऐसे व्यक्ति नहीं हैं। जिन्हें इस महान शख्सियत के बारे में पता नहीं है। देश में और भी ऐसे बहुत सारे लोग है, जो राधाबिनोद पाल को नहीं पहचानते। लेकिन आश्चर्यचकित करने वाली बात यह है कि इन्हें जापान में बहुत सारे लोग जानते हैं। जापान में लोग इन्हें बहुत महत्व देते हैं। इनकी पूजा आरती की जाती है। कई लोग तो उन्हें भगवान की तरह समझते हैं।
राधाबिनोद पाल कौन थे ?
जापान के यासुकुनी मंदिर और क्योतो के र्योजेन गोकोकु देवालय में इनकी याद में एक बेहद भव्य स्मारक बनवाया गया है। 27 जनवरी 1886 को बंगाल राज्य में जन्म लेने वाले राधाबिनोद पाल को अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त है। राधाबिनोद पाल भारतीय विधिवेत्ता और बहुत ही मशहूर न्यायाधीश थे।राधाबिनोद पाल कोलकाता के प्रेसिडेंसी कॉलेज और कोलकता विश्वविद्यालय से कानून की शिक्षा प्राप्त करने वाले उस समय के बहुत ही होनहार छात्र थे। इसके बाद वे 1923 से 1936 तक इसी कॉलेज में अध्यापन का कार्य कर रहे थे। वर्ष 1941 में उन्हें कोलकाता उच्च न्यायालय में न्यायाधीश के रूप में नियुक्त किया गया था। इसके अलावा वे अंग्रेजों के सलाहकार भी रह चुके थे।
पाल ने कानून को जबरदस्ती बताया था
न्यायाधीश राधाबिनोद पाल ने अपना फैसला सुनाते समय लिखा था कि किसी मामले के शांत हो जाने के बाद उसके बारे में कानून बनाना सही नहीं है। इसीलिए उन्होंने सैनिकों पर मुकदमा चलाने को विश्वयुद्ध के विजेता देशों की “जबरदस्ती करना” बताते हुए सभी को छोड़ने का फैसला सुनाया था। हालांकि, अन्य जजों ने इन सैनिकों को मृत्युदंड का फैसला सुनाया था। इसी वजह से जापान में आज भी राधाबिनोद पाल को एक महान व्यक्ति की तरह सम्मान दिया जाता है। साल 2007 में जब जापान के प्रधानमंत्री शिंजो आबे भारत आए थे, तो उन्होंने राधाबिनोद पाल के बेटे से कोलकाता में मुलाकात भी की थी।
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इस वजह से पूजते हैं जापानी
यह कहानी उस भारतीय जज की है, जिन्हें जापान के लोग भगवान मानते थे। दरअसल राधाबिनोद पाल को द्वितीय विश्व युद्ध के बाद जापान द्वारा किए गए युद्ध अपराधों के ऊपर चलाए गए अंतराष्ट्रीय मुकदमे जिसे ‘टोक्यो ट्रायल्स’ के नाम से भी जाना जाता है। इसमें राधाबिनोद पाल को भारतीय जज बनाया गया था। ब्रिटिश सरकार ने उन्हें भारत का प्रतिनिधि बनया था। इसमें कुल जजों की संख्या 11 थी। परंतु राधाबिनोद पाल इकलौते ऐसे जज थे, जिन्होंने ये फैसला किया था कि सभी सैनिक जो इंडिया से आए थे। वे सभी बाइज्जत बरी होंगे। इन सभी सैनिकों में जापान के तत्कालीन प्रधानमंत्री हिदेकी तोजो सहित 20 से ज्यादा नेता और सैन्य अधिकारी शामिल थे।