भारतीय क्रिकेटर मोहम्मद शमी को लेकर एक नया विवाद खड़ा हो गया है। हाल ही में चैंपियंस ट्रॉफी के दौरान उनकी एक तस्वीर वायरल हुई, जिसमें वह ऑरेंज ड्रिंक पीते नजर आ रहे हैं। इस पर कट्टरपंथियों ने सवाल उठाते हुए शमी को “गुनहगार” करार दिया, क्योंकि रमजान के पवित्र महीने में उन्होंने रोजा नहीं रखा।
मौलाना का बयान: “शमी शरिया की नजर में मुजरिम”
ऑल इंडिया मुस्लिम जमात के राष्ट्रीय अध्यक्ष मौलाना शहाबुद्दीन रजवी बरेलवी ने इस मामले पर कड़ी प्रतिक्रिया दी। उन्होंने कहा,
“इस्लाम में रोज़ा फर्ज़ है। जो इसे जानबूझकर नहीं रखता, वह गुनहगार है। मोहम्मद शमी ने ऐसा करके बहुत बड़ा गुनाह किया है और वह शरिया की नजर में मुजरिम हैं।”
क्या कहती है इस्लामी शरीयत?
शरीयत के अनुसार, रमजान के दौरान रोजा रखना हर मुसलमान पर अनिवार्य (फर्ज) है, जब तक कि कोई बीमारी या यात्रा जैसी विशेष परिस्थितियां न हों। हालांकि, इस्लाम में यह भी कहा गया है कि व्यक्ति की व्यक्तिगत स्थिति और मजबूरियों को ध्यान में रखा जाना चाहिए।
बरेली, उत्तर प्रदेश: ऑल इंडिया मुस्लिम जमात के राष्ट्रीय अध्यक्ष मौलाना शहाबुद्दीन रजवी बरेलवी ने भारतीय क्रिकेटर मोहम्मद शमी के रोजा न रखने पर कहा, "इस्लाम ने रोज़े को फर्ज़ करार दिया है। सभी पर रोज़ा फर्ज़ है। अगर कोई जानबूझकर रोज़ा नहीं रखता, तो वह गुनहगार है। ऐसा ही क्रिकेटर… pic.twitter.com/lHm2Ysex2R
— IANS Hindi (@IANSKhabar) March 6, 2025
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मोहम्मद शमी पर उठे सवाल, लेकिन क्या सही है यह विवाद?
शमी को लेकर उठे इस विवाद ने सोशल मीडिया पर भी बहस छेड़ दी है। कई लोगों ने धार्मिक स्वतंत्रता और खेल की जरूरतों का हवाला देते हुए उनका समर्थन किया, जबकि कुछ कट्टरपंथी उनकी आलोचना कर रहे हैं।
क्या किसी के व्यक्तिगत धार्मिक फैसले पर सवाल उठाना सही है?
खेल के दौरान रोजे को लेकर क्रिकेटर्स को छूट मिलनी चाहिए?
क्या धार्मिक कट्टरता को खेल और व्यक्तिगत जीवन से अलग रखना जरूरी है?
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निष्कर्ष:
मोहम्मद शमी एक भारतीय क्रिकेटर हैं और उनका पहला कर्तव्य देश के लिए खेलना है। धार्मिक मान्यताएं व्यक्तिगत होती हैं, और किसी को भी दूसरे के विश्वास या पालन करने के तरीके पर सवाल उठाने का अधिकार नहीं होना चाहिए। यह मामला सिर्फ एक खिलाड़ी से जुड़ा नहीं है, बल्कि धार्मिक स्वतंत्रता और व्यक्तिगत निर्णय के सम्मान का भी है।