प्रयागराज महाकुंभ में गंगा जल की शुद्धता को लेकर लगातार सवाल उठाए जा रहे हैं। जहां एक ओर कुछ संस्थाएं और लोग गंगाजल की गुणवत्ता पर शंका जता रहे हैं, वहीं देश के जाने-माने वैज्ञानिक डॉ. अजय कुमार सोनकर ने इसे स्नान योग्य ही नहीं, बल्कि अल्कलाइन वाटर से भी अधिक शुद्ध बताया है।
वैज्ञानिक शोध में गंगा जल निकला सर्वाधिक शुद्ध
डॉ. अजय सोनकर ने संगम, अरैल समेत पांच प्रमुख घाटों से गंगा जल के नमूने एकत्र कर प्रयोगशाला में विस्तृत परीक्षण किया। इस शोध में यह पाया गया कि करोड़ों श्रद्धालुओं के स्नान के बावजूद जल में कोई बैक्टीरियल वृद्धि नहीं हुई। इतना ही नहीं, गंगा जल का पीएच स्तर 8.4 से 8.6 के बीच रहा, जो इसे प्राकृतिक रूप से अल्कलाइन वाटर के समान शुद्ध बनाता है।
गंगा जल में मौजूद बैक्टीरियोफेज से बनी इसकी शुद्धता बरकरार
वैज्ञानिकों के अनुसार, गंगा जल में 1100 से अधिक प्रकार के बैक्टीरियोफेज पाए गए हैं। ये विशेष प्रकार के सूक्ष्मजीव होते हैं, जो हानिकारक बैक्टीरिया को नष्ट कर देते हैं। इसी कारण गंगा जल वर्षों तक बिना किसी रासायनिक प्रक्रिया के भी शुद्ध बना रहता है।
14 घंटे की लैब जांच में नहीं मिली बैक्टीरियल वृद्धि
गंगाजल की शुद्धता को लेकर लैब में 14 घंटे तक इंक्यूबेशन तापमान में रखकर परीक्षण किया गया। इस दौरान पानी में किसी भी प्रकार के हानिकारक बैक्टीरिया की वृद्धि नहीं हुई। इसके अलावा, वैज्ञानिक शोध से यह भी साबित हुआ कि गंगा जल के संपर्क में आने से त्वचा रोगों से बचाव होता है।

गंगा जल पर भ्रम फैलाने वालों को दी चुनौती
डॉ. अजय सोनकर ने गंगा जल पर सवाल उठाने वालों को प्रयोगशाला में खुद जांच करने की चुनौती दी। उन्होंने कहा, “जो भी गंगा जल की शुद्धता पर संदेह कर रहा है, वह हमारे सामने आकर जल की लैब टेस्टिंग करवा सकता है।”
गंगा जल पर रिसर्च करने वाले वैज्ञानिक कौन हैं?
डॉ. अजय कुमार सोनकर भारत के शीर्ष स्वतंत्र वैज्ञानिकों में शामिल हैं। उन्होंने कृत्रिम मोती उत्पादन में अद्वितीय सफलता हासिल कर जापानी वैज्ञानिकों को भी चुनौती दी है। हाल ही में केंद्र सरकार ने उन्हें पद्मश्री पुरस्कार के लिए नामित किया है।
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निष्कर्ष: गंगा जल केवल श्रद्धा नहीं, वैज्ञानिक प्रमाणों के आधार पर भी शुद्ध
महाकुंभ 2025 में गंगा स्नान को लेकर फैलाए जा रहे भ्रम को वैज्ञानिक शोध ने पूरी तरह खारिज कर दिया है। अब यह स्पष्ट हो गया है कि गंगा जल स्नान योग्य ही नहीं, बल्कि स्वास्थ्यवर्धक भी है। करोड़ों श्रद्धालु इसमें स्नान करके न केवल आध्यात्मिक अनुभव प्राप्त कर सकते हैं, बल्कि वैज्ञानिक दृष्टि से भी इसके लाभ उठा सकते हैं।
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