जनेऊ विवाद से गरमाया CET एग्जाम सेंटर, 45 मिनट की मिन्नतों के बाद भी छात्र नहीं दे सका गणित परीक्षा
बेंगलुरु/बीदर | 18 अप्रैल 2025 — कर्नाटक में CET परीक्षा के दौरान एक बार फिर धार्मिक पहचान से जुड़ी संवेदनशीलता पर बहस छिड़ गई है। बीदर जिले के साईं स्फूर्ति कॉलेज में परीक्षा देने आए एक छात्र को कथित रूप से जनेऊ उतारने को कहा गया, और जब उसने ऐसा करने से इनकार किया,
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तो उसे गणित की परीक्षा देने नहीं दिया गया। छात्र ने बताया कि वह 45 मिनट तक परीक्षा केंद्र पर स्टाफ से विनती करता रहा, लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई।
क्या है मामला?
छात्र के अनुसार, गणित की परीक्षा वाले दिन कॉलेज स्टाफ और पुलिस जैसी वर्दी में मौजूद तीन लोगों ने उसे परीक्षा कक्ष में प्रवेश से पहले जनेऊ हटाने के लिए कहा। छात्र ने विरोध करते हुए कहा कि वह ब्राह्मण समुदाय से आता है, जहां जनेऊ उतारना धार्मिक रूप से वर्जित है। इसके बावजूद परीक्षा केंद्र की “स्क्रीनिंग कमेटी” ने उसे रोक दिया।
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हैरानी की बात यह है कि इसी छात्र ने एक दिन पहले भौतिकी और रसायन विज्ञान के पेपर जनेऊ पहनकर बिना किसी रोक-टोक के दिए थे। बाद में उसी दिन उसे जीव विज्ञान की परीक्षा में बैठने की अनुमति दे दी गई — इस बार भी जनेऊ पहने हुए।
जिला प्रशासन ने लिया संज्ञान
बीदर की उपायुक्त शिल्पा शर्मा ने बताया कि मुख्य परीक्षक को कारण बताओ नोटिस जारी कर दिया गया है, और जांच शुरू कर दी गई है। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि ऐसी घटनाओं को बिल्कुल बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।
क्या सिर्फ एक छात्र को निशाना बनाया गया?
छात्र ने दावा किया कि अन्य छात्रों को सामान्य रूप से परीक्षा देने दी गई, जबकि केवल उससे ही यह आपत्तिजनक मांग की गई। “मैंने उनसे कहा कि मैंने पहले दो पेपर जनेऊ पहनकर दिए हैं, तो अब गणित के पेपर में समस्या क्यों?” छात्र ने कहा।
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शिवमोगा में भी सामने आया ऐसा ही मामला
बीदर के अलावा शिवमोगा जिले के आदिचुंचनगिरी पीयू कॉलेज में भी तीन छात्रों से जनेऊ उतारने को कहा गया। हालांकि, एक छात्र ने जब मना किया, तो उसे परीक्षा में बैठने दिया गया, जबकि बाकी दो छात्रों ने परीक्षा में शामिल होने से पहले जनेऊ हटा दिया।
अभिभावकों की चुप्पी, लेकिन बड़ा सवाल बरकरार
पुलिस के अनुसार, अभी तक किसी भी अभिभावक ने शिकायत दर्ज नहीं कराई है। कॉलेज प्रशासन का कहना है कि परीक्षा केवल उनके भवन में आयोजित हुई थी, संचालन की जिम्मेदारी उनकी नहीं थी। दूसरी ओर, परीक्षा स्टाफ का दावा है कि उन्होंने केवल छात्रों को कलाई पर बंधी कोई वस्तु (कशी धारा) उतारने को कहा था।
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क्या यह धार्मिक स्वतंत्रता का हनन है?
इस पूरे मामले ने एक बार फिर यह सवाल खड़ा कर दिया है कि क्या परीक्षा केंद्रों में धार्मिक प्रतीकों के साथ भेदभाव उचित है? यदि सुरक्षा कारणों से यह निर्देश था, तो उसकी जानकारी पहले से क्यों नहीं दी गई?