क्या डॉ. अंबेडकर और RSS के विचार एक जैसे थे? जानिए 11 चौंकाने वाले समानताएं
नई दिल्ली।
भारत रत्न डॉ. भीमराव अंबेडकर को अक्सर दलितों के मसीहा के रूप में प्रस्तुत किया जाता है, लेकिन क्या आप जानते हैं कि डॉ. अंबेडकर की कई प्रमुख विचारधाराएं राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) से मेल खाती हैं?
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जहां एक ओर वामपंथी और कांग्रेस जैसे दल बार-बार अंबेडकर को संघ विरोधी बताने की कोशिश करते हैं, वहीं ऐतिहासिक दस्तावेज और स्वयं डॉ. अंबेडकर की किताबें और भाषण इस नैरेटिव को झुठलाते हैं। आइए नजर डालते हैं उन 11 विचारों पर, जो अंबेडकर और संघ की वैचारिक समानता को स्पष्ट करते हैं।
1. मुस्लिम तुष्टिकरण के विरोधी थे अंबेडकर
डॉ. अंबेडकर ने अपनी किताब ‘थॉट्स ऑन पाकिस्तान’ में मुस्लिम तुष्टिकरण और भारत विभाजन पर कड़े सवाल उठाए। उन्होंने स्पष्ट कहा कि मुस्लिमों की सोच अलग राष्ट्र की है, जो भारत की एकता के लिए खतरा है। RSS का भी यही विचार है।
2. समान नागरिक संहिता का समर्थन
अंबेडकर संविधान सभा में बार-बार कहते थे कि हर नागरिक के लिए एक समान कानून होना चाहिए। उनका विचार था कि धर्म के आधार पर कानूनों में भेदभाव नहीं होना चाहिए – यह RSS की भी प्रमुख मांग रही है।
3. अनुच्छेद 370 के विरोध में थे
डॉ. अंबेडकर ने कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाली धारा 370 को लेकर विरोध जताया था। उन्होंने इसे “भारत के साथ विश्वासघात” कहा था – यह वही धारा है, जिसे मोदी सरकार ने हटाकर अंबेडकर के सपनों को साकार किया।
4. राष्ट्रवाद के प्रति समर्पण
डॉ. अंबेडकर ने स्पष्ट रूप से कहा था, “मैं जीऊंगा तो हिंदुस्तान के लिए और मरूंगा भी हिंदुस्तान के लिए।” यह बात संघ की राष्ट्र प्रथम विचारधारा से पूरी तरह मेल खाती है।
5. वामपंथ का विरोध
अंबेडकर ने वामपंथियों को संसद और संविधान विरोधी करार दिया था। उन्होंने कहा था कि वामपंथी लोकतंत्र में विश्वास नहीं करते। RSS का भी वामपंथी विचारधारा से स्पष्ट विरोध रहा है।
6. पंथनिरपेक्षता नहीं, धर्मसम्मत राष्ट्र की बात
अंबेडकर के समय में संविधान में ‘सेक्युलर’ शब्द नहीं था। उन्होंने भारत को धार्मिक स्वतंत्रता देने वाला लेकिन संस्कृति आधारित राष्ट्र माना। संघ भी यही विचार रखता है।
7. हिंदू एकता के समर्थक
डॉ. अंबेडकर ने खुद स्वीकार किया था कि वे और सावरकर हिंदू समाज की एकता और आत्मरक्षा के पक्षधर थे। संघ भी हमेशा हिंदू एकता की बात करता है।
8. जातिवाद के खिलाफ और सामाजिक समरसता के पक्षधर
RSS और अंबेडकर दोनों ही जातिगत भेदभाव के विरुद्ध थे। अंबेडकर ने कहा था कि शोषितों और वंचितों को बराबरी मिलनी चाहिए, संघ भी इसी दिशा में कार्य करता रहा है।
9. भारतीय संस्कृति और धर्म में विश्वास
डॉ. अंबेडकर ने धर्म के बिना जीवन को अधूरा माना, लेकिन विदेशी धर्मों की जगह उन्होंने बौद्ध धर्म अपनाया जो भारतीय संस्कृति की ही देन है। संघ भी यही मानता है।
10. संस्कृत को राजभाषा बनाने का प्रस्ताव
अंबेडकर ने 1949 में संस्कृत को राजभाषा बनाने का प्रस्ताव रखा था, जो पारित नहीं हो सका। RSS भी संस्कृत के प्रचार-प्रसार के पक्ष में हमेशा से रहा है।
11. आर्यों के भारतीय मूल के पक्षधर
अंबेडकर ने अपनी पुस्तक ‘शूद्र कौन थे’ में साबित किया कि आर्य इस देश के ही मूल निवासी थे। यह विचार RSS के विचारों से मेल खाता है।
निष्कर्ष
डॉ. अंबेडकर और संघ के बीच वैचारिक मतभेदों की बात अक्सर कही जाती है, लेकिन उपरोक्त तथ्यों से यह स्पष्ट है कि कई मूलभूत मुद्दों पर दोनों की सोच एक जैसी रही है।
राजनीतिक दलों को अब यह स्वीकार करना होगा कि डॉ. अंबेडकर को एक सीमित वर्ग का नायक बनाकर नहीं देखा जा सकता। वे एक राष्ट्रवादी, दूरदर्शी और बहुसंख्यक समाज के हितचिंतक थे – ठीक वैसे ही जैसे संघ का दृष्टिकोण रहा है।